भक्ति-ज्ञान-वैराग्य व त्याग का भाव जगाती है भागवत कथा, भक्ति व मुक्ति देने वाला बताया दिव्य कल्पतरु
सन्तोष शर्मा
सिकन्दरपुर, बलिया। जनचेतना सेवा समिति के तत्वावधान में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन मंगलवार की शाम को श्रद्धालुओं ने पूरी श्रद्धा से कथा का श्रवण किया। कथाकार पंडित त्रिलोकी नाथ तिवारी ने
कलियुग में श्रीमद्भागवत महापुराण को कल्पवृक्ष से भी बढ़कर बताया। कहा कि कल्पवृक्ष मात्र धर्म, अर्थ और काम को देने वाला है, जबकि भागवत कथा से अर्थ, धर्म और काम के साथ भक्ति और मुक्ति भी मिलती है। बताया कि यह केवल पुस्तक नहीं, साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। भागवत कथा का ही प्रताप था कि धुंधकारी जैसे शराबी, कवाबी, महापापी, प्रेतआत्मा का उद्धार हो गया।
गलती हो जाए तो प्रायश्चित अवश्य करें
भागवत के चार अक्षरों को विभक्त कर बताया कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त से त्याग, जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे ही भागवत कहते हैं।
इस दौरान शुकदेवजी के जन्म का वृतांत विस्तार से सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने शुकदेव महाराज को धरती पर भगवत कथा का गायन करने करने के लिए भेजा था। ताकि कलियुग में लोगों का कल्याण हो सके।
यह शास्त्र प्रमाणित तथ्य है कि भगवान, मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं कि, ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। बाद में भागवत कथा के माध्यम से प्रभु, मानव को यह संकल्प याद दिलाते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण ही पृथ्वीवासियों को यह कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिसे गवाना नहीं चाहिए।
इस दौरान राजा परिक्षित के श्रापित होने के प्रसंग का भी वर्णन किया। बताया कि जीवन में पश्चाताप का बहुत महत्व है। मनुष्य से गलती हो जाना बड़ी बात नहीं। लेकिन ऐसा होने पर समय रहते सुधार और प्रायश्चित जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो गलती, पाप की श्रेणी में आ जाती है। अपने पाप के प्रायश्चित के लिए ही परिक्षित, शुकदेवजी के यहां गए थे, जहां उन्हें भागवत कथा श्रवण का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो उनके मोक्ष का कारण बना।