शिक्षा संस्कार भारत का सनातन धर्म देता है, जिसका न कोई आदि है और न अंत है



बेल्थरारोड (बलिया)। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महराज ने कहा कि रसिया व चाईना पित्र के लिए अशांति का पर्याय है तो 28वें त्रेता में 1 करोड़ 79 लाख 86 हजार वर्ष पूर्व लंका का सिक्का चलता था। रावण ने तप शक्ति से 9वों ग्रहों व देवी देवताओं को बन्दी बनाया था। लेकिन आज साईंस को लेकर मनुष्य ने जेनरेटर का बटन दबाओं कूलर पंखा, ठंडी गर्मी की हवा मिल जायेगी। संत को आधार करके मनुष्य ने प्रकट के पांच बल्बों पर कन्ट्रोल किया है। लेकिन 192 देशों में कोई ऐसा ब्यक्ति ऐसा नही है जो अपनी आत्मा पर कन्ट्रोल किया हो। या कन्ट्रोल करने की शिक्षा देता है। इस लिए एक मात्र शिक्षा संस्कार भारत का सनातन धर्म देता है जिसका न कोई आदि है और न अंत है। जबसे सृष्टि है। सनातन पहले न मिटा और न मिटने वाला है।

 यज्ञ विखण्डित, विभाजित व असंगठित समाज को जोड़ने का सशक्त माध्यम था। आज है और सुष्टि प्यन्त रहेगा। यज्ञ ही शिव है, शक्ति है, स्मिता है। यज्ञ आस्था है यज्ञ से जो भी चाहों प्राप्त कर सकते हो। कल्प वृक्ष है संतान, धन, सुख सब कुछ प्राप्त करों। सनातन जब प्रहार होता है तो कभी राम के रुप में तो कभी कृष्ण, जगत जननी दुर्गा कहीं काली के रुप में परमशक्ति अवतार लेती है।

गंगा का जल ऐसा जल है जिसमें वैक्टिरिया के जिवांश 48 घंटे में स्वतः नष्ट हो जाते है। भगीरथ ने उपासना किया तो भगवान अपनी जटाओ में गंगा को उलझा देते है। मकर संक्रांति के पर्व पर स्नान करते है तो पित्रों तर्पण करने पर पितरों की शरीर की नकारात्मक शक्ति उर्जा शक्ति नष्ट होकर नष्ट होकर सकारात्मक उर्जा पितरों को प्राप्त होता है। अपनी कटुता का परित्याग कर एक साथ बैठते हैं, विरोधियों की कटुता मिट जाय, तो यही राम राज्य है। विश्व में अशांति का पर्याय रावण की संस्कृति थी किन्त भगवान राम ने निषाद को गले लगाया। विश्व ब्यापी एक शक्ति का निर्माण किया था।

विश्व में शांति हो सद्भाव हो, एकता का वातावरण निर्मित हो। और तुलसी के शब्दों में जीव मात्र में मनुष्य मात्र में दानबीर प्रबृतियों इनका अंत होकर सभी में देवत्व का दर्शन करें। तुलसी के शब्दों में सियाराम मय सब जग जानी। मनुष्य के अन्दर हम परम सत्ता ईश्वरी सत्ता और उसके अन्दर रहने वाली चिन्मयी अद्वैत विलक्षण उस आत्मा को जब देखते है। आत्मा को अग्नि कभी नष्ट नही कर सकती। अद्वैत विश्व का एक मात्र दर्शन है वह जीवन पद्धति है, जो सर्व श्रेष्ठ है। विश्व में अद्वैत को अपने सिद्धान्तों को अपनाए तो विश्व में 90-90 हफ्तों से रक्त पात हो रहा है। कहा कि रसिया उक्रेन पर, इजराइल तो इरान पर आधिपत्य जमाने को लेकर चिन्तित रहता है। मनुष्य का अधिकार अपने शरीर पर नही है। लेकिन सनातन दुष्टि से देखे तो सब में ईश्वरीय सत्ता है। तो ईश्वरी सत्ता को देखते हुए हम ब्यवहार जगत में करते है तो विश्व पटल से नफरत, कटुता का अंत हो सकता हे।

वेद सनातन का आधार बैदिक संस्कृति है। बेद है और बेद भगवान का भगवान का विश्वास रुप है। अमेरिका, रुस व चाइना की विस्तारवादी नीति विश्व में अशांति का सृजन कर रही है। बेगुनाह, बेकसूरों का रक्तपात ये बेधर्मी संस्कृति के लोग करते हैं तो विश्व में अशांति का वातावरण निर्मित होता है। लेकिन भारत के संतो का जो चिन्तन था जिस मंथन के द्वारा अद्वैत परमसत्ता का 2532 वर्ष पूर्व आचार्य शंकर के रक्त के कालातिर में जहां 7 वर्ष की उम्र में उन्होने पद यात्रा करते हुए ओम कालेश्वर में ममलेश्वर का साक्षत्कार करते हुए और भारत को एकसूत्र में जोड़ने के लिए अद्वैत दर्शन का आधार लेकर बसुधैव संस्कृति का बोध कराया था। यही इस यज्ञ का मूल मंत्र है। सरयू का जो प्रवाह है, अगर उसमें आप डुबकी लगाते हैं तो भाषा, प्रान्त या जाति का कोई आधार नही है। जिसके स्नान करने मात्र से आपके जन्म जन्मान्तर, कल्प कल्पांतर, युग अंतरों की अदित्यों का उन्मूलन होता है।

विश्व ब्रम्हांण्ड शुन्य की स्थिति सृजित होती है। शून्य में सुजन कर संशांक शेखर षणेन्उकर ये संसार की संरचना शिव एवं शक्ति के रुप में करते है। जिसका दर्शन आधा अर्धनारीश्वर स्त्री के रुप एवं आधा पुरुष के रुप में करते हैं। एक तरफ सोलह श्रृगार एवं एक तरफ बैराग्य प्रतीक के रुप में होता है। काल का प्रतीक नाग व नन्दी है। भगवान शिव के पुत्र गजानन्द का वाहन चूहा, जितने आभूषण है वे उनके परिवार के सवारियों के विरोधी है, प्रकाश के रुप में मस्तक प्रर चन्द्रमा शांति के प्रतीक के रुप में उमा एवं शक्ति के रुप में मां गंगा लेकिन कभी एक दूसरे वा आक्रमण है अटेक नही किया। जो यहां शिव शक्ति महा यज्ञ कर रहे है। विश्व पटल से नफरत, कटुता का अंत होगा तो सभी सम्पूर्ण सुखी होगें। लेकिन आज हमारी दुःख का कारण हमारे पड़ोसी के परिवार में सुविधाओ को देखकर 80 प्रतिशत 90 प्रतिशत परिवार प्रायः मनुष्य के दुःख का कारण है। और जिस दिन भारत व विश्व मनुष्य अपने पड़ोसी की सुविधाओं को देखकर प्रसन्न होने लगेगें उस दिन से राम राज्य श्रीगणेश होता है।

 वृन्दाबन से पधारे प्रवीण कृष्ण जी महराज ने नारद जी को एक बार काम पर विजय पा लिया। उसे भगवान शिव के पास गये और काम पर विजय पाने की बात बताई। लेकिन भगवान शिव ने सुनकर कहीं अन्यत्र बताने से मना किया था। फिर क्या था उनका मोह अंत में भंग हुआ। कहा कि जीवन में यदि कोई सफलता मिले तो उसे चर्चा नही करनी चाहिए। महराज ने भक्ति गीतों से सभी का मनारंजन भी किया।

इस मौके पर कृत्रम गंगा पावन की नदी कायम कर गंगा माता की मुर्ति के समक्ष वाराणसी से आये विद्वानों द्वारा भब्य आरती किया गया। इससे पूर्व यज्ञाचार्य पंडित रेवती रमण तिवारी ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महराज के चरण पादुका का पूजन अशोक कुमार गुप्ता से सम्पन्न कराया। यश्र के मौके पर सभी को अद्वैत शिवशक्ति परमधाम डूहां मठ के परिवज्रकाचार्य स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी का दर्शन प्राप्त हुआ।

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